बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

मानव की मर्ज़ी - मौत कहे फर्जी




सुन्दर तन नहीं छोड़ना चाहे |
सुन्दर जग नहीं छोड़ना चाहे || १ ||


नाते-रिश्ते ना तोड़ना चाहे |
बंगलों को नहीं छोड़ना चाहे || २ ||


धन-दौलत में मन लिपटाए |
इतनी दौलत जमा है हाये || 3 ||


छोड़ के इसको कैसे जाएँ |
छूटे ना ये सुख के साये || ४ ||


वैभवता में जीना चाहे |
ऐसे में कब मौत है भाये || ५ ||


मौत जो आकर के बतलाये |
हमसे पूछ के आना चाहे || ६ ||


ना में पूरा तन हिल जाए |
कोई भी यहाँ से जाना ना चाहे || ७ ||


मौत किसी से हाँ-ना चाहे |
जिसको ले जाना दौड़ी आये || ८ ||


इसके मन में दया ना आये |
आकर अपना वार लगाये || ९ ||


कोई ना अपना कोई पराए |
सबको लेकर दौड़ी जाए || १० ||


परिजन सब रोते रह जाएं |
धन-दौलत कोई काम ना आये || ११ ||


कृष्ण की जो भी टेर लगाए |
कृष्ण का धन ही संग में जाए || १२ ||

रविवार, 28 जून 2009

आज का विचार

हे प्रभु मैं तुझसे नहीं डरती, पर तेरे ही बनाये हुए इंसानों से मुझे डर लगता है |

शनिवार, 27 जून 2009

खुद को तुम बदल डालो


अगर मन तेरे उग्रता है,
सौम्य बन बदल डालो |
अगर मुंह तेरे झूठ रहता,
सत्य को तुम सखा बना लो ||

कोई है अपना कोई है दूजा,
एकेश्वर के भाव चालो |
अगर मन तेरे द्वेष भरती,
प्रेम-रंग मन रंग ही डालो ||

इसकी-उसकी करता निंदा,
जिह्वा में तुम प्रभु बसा लो |
मन को दुःख गर भरके रखता,
मोद को जीवन में घालो ||

मन तेरा कठोर है तो,
दिल में कोमलता बसा लो |
कुटिलता के संग में जीता,
सरलता से भी दिल लगा लो ||

छल अगर मन में भरा तो,
खुद को तुम निश्छल बना लो |
अज्ञान तुझको जड़ बनाए,
ज्ञान से चेतन बना लो ||

दिल में तेरे भरी है नफरत,
मन को प्रेम की गली में घालो |
मन में नहीं विश्वास प्रभु का,
थोड़ा सा प्रभु नाम गालो ||

वक्र-मन से जटिल जीवन,
सरल तू खुद को बना लो |
मलिनता को छोड़ प्राणी,
मन को तुम निर्मल बना लो ||

क्रोध ज्वार सा मन भरा है,
शांत तुम मन को बना लो |
अगर मन-मद-चूर है तो,
अंत तुम इसका करा लो ||

मन है लोभी-लालची-तुम,
विसर्जन इसका करा लो |
दूजे के धन पर कुदृष्टि,
ग्रहण से खुद को बचा लो ||

है अगर तू आलसी तो,
खुद को तुम कर्मठ बना लो |
कर्म से उत्थान तेरा,
हिमगिरी-सी गुरुता पा लो ||

अगर स्वारथ मन भरा है,
बन हितैषी प्रभु को पा लो |
ऋण को लेकर भव्य मत बन,
पहले तुम ऋण को चूका लो ||

पहली बात का करके खण्डन,
खुद को तुम सज्जन बना लो |
पहली बात को गरल जानो,
दूसरी में सुधा को पा लो ||

पहली बात में मिटती हस्ती,
दूजे में हस्ती बना लो |
पहली बात तो मर्त्य-सम है,
अमरता दूजे में पालो ||

पहली बात में प्रश्न बनता,
दूजे में उत्तर बना लो |
नहीं कहानी बनना तुझको,
खुद को तुम कविता बना लो ||

हर बदी की कर इतिश्री,
अच्छे की शतरंज बिछा लो |
अच्छी बात का श्री गणेश हो,
अब तो तुम हर चाल चालो ||

सोमवार, 18 मई 2009

एक लक्ष्य


एक लक्ष्य

लक्ष्य करो निर्धारित फिर तुम चलते जाओ

किसी के कहने पर मत रुकना, तब तुम मंजिल पाओगे
बार-बार मत राह बदलना, बदलोगे पछताओगे
पग-पग पर फिर बिन मंजिल के ठोकर खाओ
लक्ष्य करो...

खींचेगा कोई हाथ पकड़कर, रस्ता नया बताएगा
आधे रास्ते में फिर कोई, राह नयी दिखलाएगा
अँधा राही मत बन, तुम इक लक्ष्य चिराग जलाओ
लक्ष्य करो...

इच्छा शक्ति प्रबल रखो तुम, अवसरवादी मत बनना
किसी के कहे ना अटको भटको, जो सोचा है वो करना
एक लक्ष्य और सौ-सौ बाणों से एकलव्य बन जाओ
लक्ष्य करो...

दृढ़ शक्ति हो निष्ठां दीप जले पुरुषार्थ का
नैतिक पथ के पथिक बनो अवलंबन छोड़ो स्वार्थ का
सत्य का जीवन एक लक्ष्य संग नया इतिहास रचाओ
लक्ष्य करो...

रविवार, 10 मई 2009

कैसे मिलेंगे राम ?


हे प्राणी ! तुझे कैसे मिलेंगे राम ?

माला मन का फेरा,
पर मनको नहीं तू फेरा है,
इसमें कपट भरा है घनेरा,
कहता तू तेरा मैं मेरा,
कपट में बीते सुबहो-शाम...
तुझको कैसे मिलेंगे राम ?

मन में अहम का मैल समाया,
इसमें झूठ का कीच मिलाया,
छल की मोटी लकड़ी लाया,
उसमें इर्ष्या की आग लगाया,
लपटें क्रोध की छूटे ना दाम...
तुझको कैसे मिलेंगे राम ?

ये दूध सा सादा जीवन,
जीवन है जैसे मधुबन,
तूने नीम्बू रस टपकाया,
बदी से पतझड़ मौसम लाया,
सावन में सूखी शाम...
तुझे कैसे मिलेंगे राम ?

तू करता भागवत गीता,
फिर भी ज्ञान का घड़ा है रीता,
तू अपने-पराए में जीता,
तभी तो बन गयी एक कविता
तू छल कपट को दे विराम !
तुझको तभी मिलेंगे राम !!

शुक्रवार, 1 मई 2009

सोना और लोहा


सोने का टुकडा जैसे कोई लाट था,
सोने के संग में ही लोहे का बाट था..

लोग बोली बोल रहे सोने का ठाट था,
कौड़ियों के दाम पडा,लोहे का बाट था..

प्रभु की शरण में लोहा,दुखों को बोल गया,
प्रभु ने चरण बिठाया,दिल भी उनका डोल गया..

प्रभु की कृपा से पारस लोहे का रोल गया,
सोने का टुकडा वो हलके में तोल गया..

जीवन के दुःख मानव प्रभु को सुनाए जा,
रुकना नहीं फ़िर तुझको,बढ़ता तो जाए जा..

प्रभु के भजन में मगन हो के तू गाए जा,
जीवन को सुख से जी,मुक्ति भी पाएगा..

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

"हाय" - कहती सुख को बाय

मेरी माँ के जन्मदिन पर विशेष
पहले मनवा सोच ले,
फ़िर मुख से कछु बोल |
निज पर डारि के देखि ले,
मन के तराजू तोल ||

जो बात कहे औरन के लिए,
ये बात क्या तुझको भाय ?
फ़िर तू क्यूँ बोले, पर दुःख तोले,
लेता है क्यों हाय ?

जो बात किसी के मन को दुखे,
और आंत-आंत जल जाय |
दुःख भरे मन से जलती आंत से,
हरदम निकले हाय ||

बुरी बात दिल ऐसे लागे,
जैसे आग कोई जल जाय |
जलते हैं जैसे भानु-कृशानु,
दावानल लग जाय ||

बुरी बात से मन आसमां,
क्षत-विक्षत हो जाय |
तन को डॉक्टर जोड़ सके पर
मन कोई जोड़ ना पाय ||

कहके ना सोचो, सोच के बोलो,
मत लो किसी की हाय |
बाय-बाय कर सुख को भगाता,
इतनी बुरी है हाय ||

हाय से भारी पत्थर फूटे,
हाय से मिलती पीर |
सुख से दुःख की और तू जाता,
पलटाए तकदीर ||

दुश्मन से तू भाग सके है,
'हाय' से कैसे भागे ?
आत्म-सरीखी सूक्ष्म है 'हाय',
चलती है तेरे आगे ||

सुने भागवत, रामकथा और
दिया थोड़ा ध्यान |
कर्म में आया-मन ना समाया,
रह गया कोरा ज्ञान ||

निगमागम सब शास्त्र बताए,
कहते वेद पुराण |
कहे भागवत तुलसी रामायण,
गीता और कुरान ||

सबने यही एक बात बताई,
एक बताया सार |
सुख देकर के दुःख को ले लो,
दुःख से दुःख का भार ||

मंगलवार, 31 मार्च 2009

बूँद ने बदला भाग्य


बच्चे का जब जन्म हुआ,
दूध से जीवन शुरू हुआ..
बड़ा हुआ बद्संगति पाई,
मद को बूँद से शुरू किया..

बूँद-बूँद को पीते-पीते,
बूँद घूँट में बदल गई..
देश के भावी कर्णधार थे,
देश की दिशा भी बदल गई..

बूँद घूँट में बदली है,
और घूँट बदल गई बोतल में..
पहले बाहर पीते थे,
अब घर बदला है होटल में..

इस बूँद ने जीवन बदला है,
इस बूँद से डर मेरे लाला..
ये बूँद छलावा अमृत का,
ये बूँद तो है विष का प्याला..

पीकर इस विष के प्याले को,
तुम गिरते पड़ते चलते हो..
तुम बन सकते थे रखवाले,
पर ज़हर की आग में जलते हो..

इस धरा पर जिसने जन्म लिया,
वो कर्ज़दार है देश का..
इस माटी का क़र्ज़ चुकाना है,
तू वेश बना अब शेष का..

रविवार, 15 मार्च 2009

टिक-टिक का सन्देश



टिक-टिक-टिक-टिक ये घड़ी चलती,
काम है चलना चलती रहती..
सेकेंड की सुइया सरपट दौड़े,
जैसे मैदानों में घोड़े..

मंथर-गति है मिनट की सुइया,
पर चलती तो है मेरे भइया..
घंटे की क्या बात बताएँ,
कच्छप चाल से चलती जाए..

सुइयाँ ये संदेश सुनाए,
जीवन पथ पर बढ़ती जाए..
सेकंड सुई के संग जो बढ़ता,
एक पल में दस पल को जीता..

मिनट की सुई भी जीना सिखाती,
जीवन कुछ गतिमान बनाती..
सुई घंटे के संग जो जीता,
दस पल भी दो पल में बीता..

घंटे संग जो चलना ना चाहे,
कहाँ है मंजिल कहाँ है राहें..
चेतन बनकर बन गया है जड़,
जीवन मधुबन बन गया पतझड़..

कुछ मरकर भी अमर हो जाते,
कुछ जी कर भी मर जाते..
घड़ी ये हमको जीना सिखाती,
तीन गति ये हमको बताती..
सरपट गति में चलते जाओ,
गीत खुशी के हरदम गाओ..

बुधवार, 4 मार्च 2009

इक-दूजे के पूरक


जहाँ मान नहीं है पति का,
वहाँ शान कहाँ पत्नी की..
जहाँ मान नहीं है पत्नी का,
वहाँ शान कहाँ है पति की..

एक-दूसरे के हैं पूरक,
एक-दूसरे से है जीवन..
एक-दूसरे की हैं खुशबू,
एक-दूसरे से है मधुबन..

इक दूजे बिन हैं अधूरे,
कैसे जल बिन नाव चलाये..
एक दूजे से हैं पूरे,
जैसे माझी पार लगाए..

हैं इक दूजे के शीर्ष,
हैं इक दूजे की पूजा..
हैं दोनों ही अभिमान,
इस भाव से जग में हो ऊँचा..

बिन पानी के खाली सागर,
कोई लहर कहाँ से आए..
भरा उदधि इक दूजे से,
कोई ठोस वजूद बताये..

बिन घी के दीपक-बाती,
नहीं कभी भी वो जल पाती..
संगम-संग ज्योत जलाकर,
वो मंजिल पर ले जाती..

इक दूजे से हैं अंक,
बने सौ का पूरा-पूरा..
इक दूजे से जीवन पूरा,
है कुछ भी नहीं अधूरा..

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

हँसी और मुस्कान


हँसी का कोई मोल नहीं,
फ़िर भी ये अनमोल |
हँसी के मोती खूब बिखेरो,
कभी करो नहीं तोल ||

सभ्यता की रस्सी से तूने,
हँसी को पकड़ लिया |
अपनी ही मुट्ठी में अपना,
जीवन जकड़ लिया ||

महलों में सब बैठे हैं पर,
सुख का कोना खाली |
हँसी की बंसी सब बजाओ,
बैठ कदम्ब की डाली ||

हँसी का रस तो लुप्त हो गया,
भौतिक रस है छाया |
"राग-मल्हार" को गाना था,
पर "दीपक-राग" को गाया ||

सौ रोगों की हँसी दवा है,
रोग को दूर भगाती |
रोग मौत है - हँसी है जीवन,
जीवन पास में लाती ||

खिले फूल से बगिया महके,
सभी के मनको भाते |
इन्हें देखने बूढे-बच्चे,
दूर-दूर से आते ||

जीवन की इस बगिया में,
तुम हँसी के फूल खिलाओ |
हँसी की भीनी-भीनी खुशबू,
इस जग को महकाओ ||

जहाँ भी जाओ खूब हंसाओ,
ये तो ऐसा खजाना है |
जितना बांटों उतना बढ़ेगा,
ये तो बढ़ते जाना है ||

मौके-बेमौके पर हँसना,
इससे प्यारे बचना |
विवेकशील नहीं बन पाओगे,
मूर्ख की होगी रचना ||

फ़कीर की मस्ती को देखो,
नहीं है कौड़ी पैसा |
हंसकर चिमटा लेकर गाए,
कोई राजा हो जैसा ||

हँसते हुओं को जो आंसूं दे,
वो तो नहीं महान |
रोते हुओं को जो हैं हंसाते,
वो हैं जग की शान ||

हंसकर जीने वाले ही,
इस जग से हंसके जाएँगे |
खाली हाथ आना-जाना ये,
झोली भर ले जाएँगे ||

रविवार, 25 जनवरी 2009

आसां और मुश्किल


झगडा करना आसां हैं।
पर प्यार बढ़ाना मुश्किल |
कर झगडा समझौता चाहे,
खाई पटना मुश्किल ||

इज्ज़त खोना आसां है,
पर मान बढ़ाना मुश्किल |
पैसा देकर नामुमकिन है,
इसको पाना मुश्किल ||

घर को तोड़ना आसान है,
पर इसे बनाना मुश्किल |
तोड़ के घर को जोड़ना चाहो,
इसे बसाना मुश्किल ||

पेड़ को काटना आसां है,
पर वृक्ष लगाना मुश्किल |
बोए बीज का अंकुर फूटे,
सालों सींचना मुश्किल ||

खर्चा करना आसां है,
पर पैसा बचाना मुश्किल |
वादा करना आसां है,
पर इसे निभाना मुश्किल ||

बातें करना आसां है,
पर पूरी करना मुश्किल |
चलते हुओं को रोकना आसां,
धूरी बनना मुश्किल ||

बात बताना आसां है,
पर भेद छुपाना मुश्किल |
कड़वे-तीर चलाना आसां,
बेद को गाना मुश्किल ||

सहानुभूति की मरहम पट्टी,
मीठी बोली मुश्किल |
दुर्नामों की बोरी आसां,
नाम की झोली मुश्किल ||

आलस में रत रहना आसां,
काम को करना मुश्किल |
क़र्ज़ को लेना आसां है,
पर दाम चुकाना मुश्किल ||

रामायण को पढ़ना आसां,
सीता बनना मुश्किल |
कौरव के किरदार घनेरे,
गीता बनना मुश्किल ||

सुख में छेद को करना आसां,
पीड़ा उठाना मुश्किल |
भार बढ़ाना आसां है, पर
बीड़ा उठाना मुश्किल ||

हारे हुओं को हिम्मत देकर,
धीर बंधाना मुश्किल |
जीवन पथ में भटके हुओं को,
तीर दिखाना मुश्किल ||

मुंह को खोलना आसां है,
पर धीरज धरना मुश्किल |
धीरज धरके - सेवा करके,
नीरज बनना मुश्किल ||

जंग को करना आसां है,
पर संग निभाना मुश्किल |
संग निभाकर ख़ुद को तो,
सतरंग बनाना मुश्किल ||

कपट कलेवर बनना आसां,
सच्चा बनना मुश्किल |
झूठ बदी सब आसां है,
पर अच्छा बनना मुश्किल ||

बात बनाना आसां है,
पर भजन बनाना मुश्किल |
कृष्ण मनाना आसां,
भजन को प्रेम से गाना मुश्किल ||

सोमवार, 19 जनवरी 2009

सुख दुःख भाई-भाई


लेख विधि ने जो लिख डाले,
ख़ुद ही विधि के टरत ना टाले |

लिखे माल के अंक ना मिटते,
सुख-दुःख हरदम कभी ना टिकते |

सुख पाकर के जो इतराए,
ना जाने कब दिन फ़िर जाए |

शैब्या थी हरिश्चंद्र की रानी,
राजा के दिल की पटरानी |

राजा ने जब राज को त्यागा,
गली-गली वो फिरे अभागा |

हरिश्चंद्र के दिल की पटरानी,
बेच रहे ख़ुद राजा दानी |

बेटा बेचा बेचीं रानी,
ख़ुद करते मरघट निगरानी |

समय को कोई जान ना पाए,
क्या जाने कब क्या करवाए |

घमंड करे और कुछ भी बोले,
मोटे बोल राम को तोले |

सुख के बादल जब हैं छाए,
छप्पन भोग भी रास ना आए |

कभी तो सूखी रोटी भाए,
छप्पन भोग का स्वाद चखाए |

मखमल पर भी नींद ना आए,
टाट-पटोरे भी सुख के साए |

यही तो है सुख-दुःख का फेरा,
सभी को बनना पड़ता चेरा |

दुःख-सुख को जो बंधु बनाए,
सभी हाल में मौज मनाए |

मौज मनाना ही जिंदगानी,
दूध मिले या मिल जाए पानी |

खुशी के संग में दुःख को झेलें,
दुःख भी सुख बनकर के खेले |

सुख पाकर के मत इतराओ,
दुःख में भी तुम मत घबराओ |

दोनों को तुम गले लगाओ,
दोनों के संग मौज मनाओ |

शनिवार, 17 जनवरी 2009

हिन्दी की दुर्गति


देश तो स्वतन्त्र हुआ पर,
अब भी वो गुलाम है |
खदेड़ दिया अंग्रेजों को पर,
अंग्रेज़ी तो यहाँ की शान है ||

पढ़-पढ़ कर अंग्रेज़ी सबने,
इसको सागर बना दिया |
हिन्दी की नदियों को सबने,
इस सागर में समां दिया ||

बेगाना हो गया अपना घर,
अपने ही घर में पराई है |
खदेड़ दिया अंग्रेजों को पर,
अंग्रेज़ी तो हर जगह छाई है ||

नाम मिला है राष्ट्र की भाषा,
पद-गरिमा ना मिल पाई |
पद की जगह बैशाखी मिल गई,
लंगड़ी बनी सब हरजाई ||

राष्ट्र की भाषा हिन्दी है,
इस राष्ट्र की शक्ति हिन्दी है |
जीवन-प्रवाह भी हिन्दी है,
संस्कृति हमारी हिन्दी है ||

राष्ट्र-एकता की कड़ी है हिन्दी,
संस्कृत से ये आई है |
दुश्मन थे अंग्रेज़ तो क्या,
अंग्रेज़ी तेरा भाई है ||

अंग्रेज़ी का परचम लहरा,
हिन्दी कितनी झुकी-झुकी सी है |
अपने देश में वृद्ध हुई ये,
साँसें देखो, रुकी-रुकी सी है ||

अंग्रेज़ी पढने वालों तुमको,
हिन्दी की दुहाई है |
अंग्रेज़ी तेरी रिश्तेदार,
पर हिन्दी तेरी माई है ||

अपनी भाषा के संग रहकर,
सब भाषा से रिश्ता जोड़ |
पर हिन्दी सबसे ऊपर है,
हिन्दी से ना रिश्ता तोड़ ||

गुरुवार, 15 जनवरी 2009

अनुभव


कुछ लोग जीते जाते हैं,
उम्र को पीते जाते हैं,
धीरे-धीरे वृद्धों की श्रेणी में जाते हैं,
पर अनुभव नहीं लेने के कारण,
अनुभव-ज्ञान में कोरे ही रह जाते हैं..

बालों में सफेदी छा जाती है,
पर इसमें अनुभवता की
छाप नहीं आती है,
चेहरे पर झुर्रियाँ गुजरे कितने ही,
मौसमों की कहानी कहती है,
पर अनुभव में ये झुर्रियाँ,
ज्ञान-बरी रहती है..

पर कुछ लोग जीवन से लेने वाले,
बचपन से ही संग्रह करते हैं,
अनुभवों को भरते हैं,
उम्र में भले ही बच्चे हैं,
पर अनुभव ज्ञान में अच्छे हैं..

जहाँ भी जाते हैं,
वहाँ से कुछ लेकर आते हैं,
तो कुछ देकर भी जाते हैं,
लेकर-देकर जीवन को ये
भव्य बनाते हैं,
चाँद-रुपी जीवन को अनुभव-रुपी
तारों से सजाते हैं..

छोटी से छोटी बात को भी
जीवन में गुनाते हैं,भुनाते हैं,
और अनुभव की खान बन जाते हैं,
"घाट-घाट का पानी पीना"
वाले मुहावरे को,
कर्म से बताते हैं,
अपने अनुभव का डंका
हर जगह बजाते हैं..

रविवार, 11 जनवरी 2009

दर्पण


जिसने जो दिया उसने वो पाया,
ठीक वैसे ही जैसे दर्पण झूठ नहीं बोलता
उसने हर हाल को जस का तस बतलाया..

बचपन में बचपन को नहीं छिपाया,
जवानी में सुन्दरता का राज़ बताया,
पचपन में मुरझे चेहरे को दिखलाया
और मनोविज्ञानी की तरह सामने वाले को समझाया,

मैं तो आज भी वही हूँ ख़ुद को ना बदलाया,
वो बचपन का भोलापन,जवानी की खिलखिलाहट को
किस तिजोरी में छिपाया..

बचपन से पचपन तक आते-आते छल,कपट,कड़वाहट रुपी
कैंसर की बिमारी को इस शरीर में कहाँ-कहाँ लगाया..
और इस बिमारी से कितनों को सताया..

कोई नहीं जानता कि ऊपर जा कर किस-किस ने स्वर्ग को पाया..
अभी भी समय है कुछ दवा-दारु कर,आज का जो वक्त है,
इसे स्वर्ग बना, शांति से जी, दूसरों को बख्श दे
इस भयंकरतम बीमारी से और अपनी भी बचाले ये काया..

जिसने जो दिया उसने वही पाया,
ठीक वैसे ही जैसे मैनें जो देखा वही दिखलाया,
कभी भी झूठ नहीं बतलाया..
बचपन से लेकर पचपन तक का प्रकरण ज्यों का त्यों बतलाया..

गुरुवार, 8 जनवरी 2009

भोर का मेला, वर्णन की बेला


भोर हुई है सुबह की लाली,
चिडियाँ चहक रही है . .
कलियों ने घूंघट हैं खोले,
हवा भी महक रही है

किस लय पर है ओस की बूँदें,
टप-टप टपक रही है . .
सूरज-कर संग ओस के कण मिल,
चांदी सी चमक रही है . .

नदी का दर्पण नीला अम्बर,
छाया झलक रही है . .
टकराए जब रवि-किरण तो,
सोने सी दमक रही है . .

गाँव की गोरी संग है किशोरी,
चूड़ी खनक रही है . .
नीर भरन को जाए पनघट,
पायल छनक रही है . .

काठ की लकड़ी चूल्हे में है,
आग भी दहक रही है . .
चूल्हे पर कोई चाय चढ़ी है,
पतीले से छलक रही है . .

मासूम है अभी स्वप्न लोक में,
पलकें झपक रही है . .
मैया उठाए,मन ना भाए,
-जैसे बिजली कड़क रही है . .

बैलों के गले में घंटी बंधी है,
घुँघरू झनक रहे हैं . .
जीवन का कोई राग है इसमें,
सरगम छलक रहे है . .

खेत पे जाए हलधर-हल,
काँधे पर लटक रहे हैं . .
गाँव के छोरे,अल्हड़ भोले,
यूं ही भटक रहे हैं . .

हाथ किसान के धान की बाली,
सिल पर पटक रहे हैं . .
नन्हीं गुड़िया कदम बढाए,
-चाहे कितने भी अटक रहे हैं . .

छिन्यो कान्हो माखन तो गोपी,
मटकी पटक रही है . .
जब वो बजाए मधुर मुरलिया,
तो राधा मटक रही है . .