बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

मानव की मर्ज़ी - मौत कहे फर्जी




सुन्दर तन नहीं छोड़ना चाहे |
सुन्दर जग नहीं छोड़ना चाहे || १ ||


नाते-रिश्ते ना तोड़ना चाहे |
बंगलों को नहीं छोड़ना चाहे || २ ||


धन-दौलत में मन लिपटाए |
इतनी दौलत जमा है हाये || 3 ||


छोड़ के इसको कैसे जाएँ |
छूटे ना ये सुख के साये || ४ ||


वैभवता में जीना चाहे |
ऐसे में कब मौत है भाये || ५ ||


मौत जो आकर के बतलाये |
हमसे पूछ के आना चाहे || ६ ||


ना में पूरा तन हिल जाए |
कोई भी यहाँ से जाना ना चाहे || ७ ||


मौत किसी से हाँ-ना चाहे |
जिसको ले जाना दौड़ी आये || ८ ||


इसके मन में दया ना आये |
आकर अपना वार लगाये || ९ ||


कोई ना अपना कोई पराए |
सबको लेकर दौड़ी जाए || १० ||


परिजन सब रोते रह जाएं |
धन-दौलत कोई काम ना आये || ११ ||


कृष्ण की जो भी टेर लगाए |
कृष्ण का धन ही संग में जाए || १२ ||