अमिताभ बच्चन साहब को उनके ७०वें जन्मदिन
के उपलक्ष्य पर एक छोटी सी कविता रुपी भेंट। अमिताभ जी के परिवार वालों के
नाम और उनके चर्चित फिल्मों और किरदारों के नामों को बुन कर यह कविता रची
गयी है।
असंख्य किरण यानी अमिताभ
जैसे नभ में सूरज दमक रहा
एक धरा है, एक सूरज है
एक चाँद सा चमक रहा
जया-जया-जय विजय चहुँ दिक
कैसे शब्दों से अभिषेक करें
यश की ऐश्वर्या हिम-नग-सी
सागर सी गहराई भरे
करोड़पति के बनकर नायक
खुशियों के आराध्या बने
दुःख मेटा और खुशियाँ बांटी
पतझड़ में मधुमास बने
दूजों के दुःख भीगी आँखें
वे हैं विजय इतिहास बनें
जीवन के इस अग्निपथ में
विजय किरण सी आश बने
बने मुक़द्दर के सिकंदर
जन-गण-मन को भाये हैं
पल में पलटा भाग्य लक्ष्मी ने
लक्ष्मी पुत्र बन आये हैं.
सबको दिल से गले लगा कर
हर दीवार को तोड़ दिया
प्रेम शहंशाह बने बागबां
फूल-फूल को जोड़ लिया
कभी-कभी काला पत्थर सा
जीवन ये जंजीर बने
कभी ख़ुशी, कभी गम हैं ज्यादा
लोगों की तकदीर बने
कई जीवन के अक्स बने
ये मोटा भाई दिलवाले
अक्टूबर के 30 दिनों को
तारीख बनाया विश्व में खुद को
उनको क्या तारीख से काम
असंख्य बसंतों की मिलें बहारें
आयु का उपवन खिलता रहे
हरा भरा हर वक़्त हो जीवन
मौसम चाहे बदलता रहे
जन्मदिन का, मुबारकों का
सिलसिला यूँ चलता रहे
मोहब्बतें लुटती रहे
आनंद क्षण प्रतिपल पले
खुशियों का दीप जलता रहे
- शोभा सारड़ा