मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

मुझसे होगी शुरुआत!

यह कविता मेरा माँ ने समाज में फैले भ्रष्टाचार और अनाचार को संबोधित करते हुए लिखा है. यह बताने की कोशिश है कि बदलाव खुद से आ सकती है, मुझसे! इसलिए शुरुआत मुझसे ही करना होगा.

गीत: शोभा सारड़ा
आवाज़: प्रतीक माहेश्वरी
संगीत: प्रतीक माहेश्वरी

विडियो:

बोल:
द्रौपदी की अस्मिता यहाँ हो रही है तार-तार
छलने सीता योगी बन रावण खड़े हैं द्वार द्वार
बनके राम ब्रह्मास्त्र से काटूं रावण का घात
मुझसे होगी शुरुआत!

राजनीति कपट छाया, अनाचार घोर है
कौरवों के, शोषण का, अत्याचार का दौर है
बन कृष्ण अनाचार मिटे हो पांचजन्य का नाद
मुझसे होगी शुरुआत!

महंगाई से जकड़ा मानव भ्रष्टों के सर है ताज
देव संस्कृति लुप्त हुई मंदिर-मस्जिद लगी आग
बन के विवेकानंद करूँगा मैं विवेक की बात
मुझसे होगी शुरुआत!

राजनीति है मूल्यहीन सत्ता संगठ जोड़ है
साम दाम दंड भेद की नीति अवसरवादी होड़ है
खड़ा रहूँगा बन युग प्रहरी करूँ अवसर पर आघात
मुझसे होगी शुरुआत!

राष्ट्र सुरक्षा, जन सेवा संग सच्चे मुद्दे भूल गए
तुच्छ स्वार्थ सिद्धांत रहित सच्ची सुचिता के rule गए
इस धरा पे अमृत लाऊंगा पियूं विष को मैं सुकरात
मुझसे होगी शुरुआत!

सत्ता के इस दांव पेंच में रोटी छिनती गरीब की
झोपडियों में छाये अँधेरा लौ बुझती है दीप की
दीपावली का दीप बनूँगा चाहे अमावस रात
मुझसे होगी शुरुआत!

पतन देश का खूब हुआ झुलसी कश्मीर की वादियाँ
ज़र्रे ज़र्रे में जहर घुला आतंक करे बरबादियाँ
शीश हिमालय ध्वज फहरेगा करूँ तिरंगी बात
मुझसे होगी शुरुआत!

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

वेदना

खामोश हुई जब वेदना
दिल पीर भरी तब वेदना
दानवों ने तांडव खूब रचा
खण्डों में बंटी संवेदना

इंसानों के भेस दरिन्दे
ये कैसी विषमता छाई है
पूरा देश है शर्मसार
कैसी दहशतगर्दाई है

ये मौत के सौदागर
बहनों पर फेंक रहे तेज़ाब हैं
विषधर से बन गए विषैले
ये भारत के कसाब हैं

लटकाओ इनको फांसी पर
जनमन का पन्ना बोल पड़ा
इस कुकृत्य से कांपती क्रूरता
स्तब्ध है ये सारा देश खड़ा

दुर्दांत भेड़िये बने दरिन्दे
इतने ये मक्कार बने
हर शब्द बना है बौना
इक बहन के गुनहगार बने

नैतिकता जकड़ी ज़ंजीरें
बिलख रही है मानवता
मौत का सौदा करने वाले
खड़ी हुई है दानवता

लुंज-पुंज सब हुई व्यवस्था
कटघरे में क़ानून खड़ा
बनने बिगड़ने और संशोधन
सत्ता ने किया प्रश्न बड़ा

कुचली गयी है कितनी बेटियाँ
आगे क्या विश्वास करें
क़ानून कड़ा जब तक ना बने
ऐसी सत्ता से क्या आस करें?

हाथ को तोड़े, हाथ को तोड़ो
मौत के बदले मिले जो मौत
तोड़े पाँव तो चलने मत दो
फोड़े आँख तो रहे न ज्योत

प्रावधान बने अगर सज़ा का
फांसी इस दुस्साहसी को
नारी को तब न्याय मिलेगा
इक बेटी की विदाई को

इन दहशतगर्दों ने अपने
मात पिता का नाम (खराब) किया
मात पिता कैसे कह सकते
ऐसों को हमने जन्म दिया

ऐसे बेटों के कारण
ये सर पल पल झुक जाएगा
एक बेटी की मौत के कारण
जीवन भी घुट जाएगा


*अपने बच्चों को संस्कारित करें*

हर जननी का धर्म यही
संस्कारित बच्चों को करें
इससे पहले निज जीवन में
कथनी करनी एक करे

सिद्धांतों से नहीं समझौता
नैतिक पथ जीवन ये चले
बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय
निश्छलता संतुष्टि भरे

सत्य पे रहना, सत्य पे चलना
पहले खुद से शुरू करे
फ़िर बच्चों में इसी बात को
कूट कूट के खूब भरे

आदर्श बने जब मात पिता
तो बच्चे भी इस पथ जाते
माता अगर सचेत रहे तो
बच्चे भटक नहीं पाते

गूँज उठे इस धरा गगन पर
हर जननी की वाणी
बड़े भाग मानुस तन मिलता
तुम इश्वर वरदानी

इश्वर की संतान हो तुम
उजियारा आनंद बनो
नीति प्रीती के परम हँस बनो
विदुर-विवेकानंद बनो

एकलव्य का लक्ष्य बनो तुम
अर्जुन से स्तंभ बनो
बनो प्रीत श्री कृष्ण की बंसी
तुम तो डाल कदम्ब बनो

धर्म की शिक्षा, कर्म की शिक्षा
ब्रह्मचर्य हो चरित्र गठन
रहे पुरुषों में मर्यादा राम
नारी में सीता चिन्ह चरण

धर्म की शिक्षा, कर्म की शिक्षा
ब्रह्मचारी हो चरित्र गठन
राम की हो मर्यादा
नारी में हो सीता चिन्ह चरण

नारी भवानी, नारी भगवती
नारी है जग वन्दिता
यस्त्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
रमन्ते तत्र देवता

नारी का उत्थान जहाँ पर
जन जन का उत्थान वहाँ
समाधान में जीवन बीते
हर पल नया प्रभात वहाँ

नारी तुम कल्याणी हो
तुम गौरव की वाणी हो
बनी कौशल्या राम सा बेटा 
तुम तो यशोदा रानी हो

शिवा पुत्र माँ जीजा बाई
नए युग की निर्माणी हो
तुम सीता हो, तुम सावित्री
तुम गंगा महारानी हो

राग हो तुम, वैराग्य हो तुम
तुम झांसी की रानी हो
अविरल भक्ति यमुना तट
श्रद्धा की धार सुहानी हो

संस्कारों का स्रोत हो प्रज्ञा
शक्ति रूप तू ग्यानी है
नारी के गौरव की गाथा
फ़िर से तुम्हें लिखानी है
फ़िर से तुम्हें लिखानी है