मेरी माँ के जन्मदिन पर विशेष
पहले मनवा सोच ले,फ़िर मुख से कछु बोल |
निज पर डारि के देखि ले,
मन के तराजू तोल ||
जो बात कहे औरन के लिए,
ये बात क्या तुझको भाय ?
फ़िर तू क्यूँ बोले, पर दुःख तोले,
लेता है क्यों हाय ?
जो बात किसी के मन को दुखे,
और आंत-आंत जल जाय |
दुःख भरे मन से जलती आंत से,
हरदम निकले हाय ||
बुरी बात दिल ऐसे लागे,
जैसे आग कोई जल जाय |
जलते हैं जैसे भानु-कृशानु,
दावानल लग जाय ||
बुरी बात से मन औ आसमां,
क्षत-विक्षत हो जाय |
तन को डॉक्टर जोड़ सके पर
मन कोई जोड़ ना पाय ||
कहके ना सोचो, सोच के बोलो,
मत लो किसी की हाय |
बाय-बाय कर सुख को भगाता,
इतनी बुरी है हाय ||
हाय से भारी पत्थर फूटे,
हाय से मिलती पीर |
सुख से दुःख की और तू जाता,
पलटाए तकदीर ||
दुश्मन से तू भाग सके है,
'हाय' से कैसे भागे ?
आत्म-सरीखी सूक्ष्म है 'हाय',
चलती है तेरे आगे ||
सुने भागवत, रामकथा और
दिया न थोड़ा ध्यान |
कर्म में न आया-मन ना समाया,
रह गया कोरा ज्ञान ||
निगमागम सब शास्त्र बताए,
कहते वेद पुराण |
कहे भागवत तुलसी रामायण,
गीता और कुरान ||
सबने यही एक बात बताई,
एक बताया सार |
सुख देकर के दुःख को ले लो,
दुःख से दुःख का भार ||