रविवार, 10 मई 2009

कैसे मिलेंगे राम ?


हे प्राणी ! तुझे कैसे मिलेंगे राम ?

माला मन का फेरा,
पर मनको नहीं तू फेरा है,
इसमें कपट भरा है घनेरा,
कहता तू तेरा मैं मेरा,
कपट में बीते सुबहो-शाम...
तुझको कैसे मिलेंगे राम ?

मन में अहम का मैल समाया,
इसमें झूठ का कीच मिलाया,
छल की मोटी लकड़ी लाया,
उसमें इर्ष्या की आग लगाया,
लपटें क्रोध की छूटे ना दाम...
तुझको कैसे मिलेंगे राम ?

ये दूध सा सादा जीवन,
जीवन है जैसे मधुबन,
तूने नीम्बू रस टपकाया,
बदी से पतझड़ मौसम लाया,
सावन में सूखी शाम...
तुझे कैसे मिलेंगे राम ?

तू करता भागवत गीता,
फिर भी ज्ञान का घड़ा है रीता,
तू अपने-पराए में जीता,
तभी तो बन गयी एक कविता
तू छल कपट को दे विराम !
तुझको तभी मिलेंगे राम !!