रविवार, 15 मार्च 2009

टिक-टिक का सन्देश



टिक-टिक-टिक-टिक ये घड़ी चलती,
काम है चलना चलती रहती..
सेकेंड की सुइया सरपट दौड़े,
जैसे मैदानों में घोड़े..

मंथर-गति है मिनट की सुइया,
पर चलती तो है मेरे भइया..
घंटे की क्या बात बताएँ,
कच्छप चाल से चलती जाए..

सुइयाँ ये संदेश सुनाए,
जीवन पथ पर बढ़ती जाए..
सेकंड सुई के संग जो बढ़ता,
एक पल में दस पल को जीता..

मिनट की सुई भी जीना सिखाती,
जीवन कुछ गतिमान बनाती..
सुई घंटे के संग जो जीता,
दस पल भी दो पल में बीता..

घंटे संग जो चलना ना चाहे,
कहाँ है मंजिल कहाँ है राहें..
चेतन बनकर बन गया है जड़,
जीवन मधुबन बन गया पतझड़..

कुछ मरकर भी अमर हो जाते,
कुछ जी कर भी मर जाते..
घड़ी ये हमको जीना सिखाती,
तीन गति ये हमको बताती..
सरपट गति में चलते जाओ,
गीत खुशी के हरदम गाओ..