बुधवार, 4 मार्च 2009

इक-दूजे के पूरक


जहाँ मान नहीं है पति का,
वहाँ शान कहाँ पत्नी की..
जहाँ मान नहीं है पत्नी का,
वहाँ शान कहाँ है पति की..

एक-दूसरे के हैं पूरक,
एक-दूसरे से है जीवन..
एक-दूसरे की हैं खुशबू,
एक-दूसरे से है मधुबन..

इक दूजे बिन हैं अधूरे,
कैसे जल बिन नाव चलाये..
एक दूजे से हैं पूरे,
जैसे माझी पार लगाए..

हैं इक दूजे के शीर्ष,
हैं इक दूजे की पूजा..
हैं दोनों ही अभिमान,
इस भाव से जग में हो ऊँचा..

बिन पानी के खाली सागर,
कोई लहर कहाँ से आए..
भरा उदधि इक दूजे से,
कोई ठोस वजूद बताये..

बिन घी के दीपक-बाती,
नहीं कभी भी वो जल पाती..
संगम-संग ज्योत जलाकर,
वो मंजिल पर ले जाती..

इक दूजे से हैं अंक,
बने सौ का पूरा-पूरा..
इक दूजे से जीवन पूरा,
है कुछ भी नहीं अधूरा..