सोमवार, 19 जनवरी 2009

सुख दुःख भाई-भाई


लेख विधि ने जो लिख डाले,
ख़ुद ही विधि के टरत ना टाले |

लिखे माल के अंक ना मिटते,
सुख-दुःख हरदम कभी ना टिकते |

सुख पाकर के जो इतराए,
ना जाने कब दिन फ़िर जाए |

शैब्या थी हरिश्चंद्र की रानी,
राजा के दिल की पटरानी |

राजा ने जब राज को त्यागा,
गली-गली वो फिरे अभागा |

हरिश्चंद्र के दिल की पटरानी,
बेच रहे ख़ुद राजा दानी |

बेटा बेचा बेचीं रानी,
ख़ुद करते मरघट निगरानी |

समय को कोई जान ना पाए,
क्या जाने कब क्या करवाए |

घमंड करे और कुछ भी बोले,
मोटे बोल राम को तोले |

सुख के बादल जब हैं छाए,
छप्पन भोग भी रास ना आए |

कभी तो सूखी रोटी भाए,
छप्पन भोग का स्वाद चखाए |

मखमल पर भी नींद ना आए,
टाट-पटोरे भी सुख के साए |

यही तो है सुख-दुःख का फेरा,
सभी को बनना पड़ता चेरा |

दुःख-सुख को जो बंधु बनाए,
सभी हाल में मौज मनाए |

मौज मनाना ही जिंदगानी,
दूध मिले या मिल जाए पानी |

खुशी के संग में दुःख को झेलें,
दुःख भी सुख बनकर के खेले |

सुख पाकर के मत इतराओ,
दुःख में भी तुम मत घबराओ |

दोनों को तुम गले लगाओ,
दोनों के संग मौज मनाओ |