शनिवार, 27 जून 2009

खुद को तुम बदल डालो


अगर मन तेरे उग्रता है,
सौम्य बन बदल डालो |
अगर मुंह तेरे झूठ रहता,
सत्य को तुम सखा बना लो ||

कोई है अपना कोई है दूजा,
एकेश्वर के भाव चालो |
अगर मन तेरे द्वेष भरती,
प्रेम-रंग मन रंग ही डालो ||

इसकी-उसकी करता निंदा,
जिह्वा में तुम प्रभु बसा लो |
मन को दुःख गर भरके रखता,
मोद को जीवन में घालो ||

मन तेरा कठोर है तो,
दिल में कोमलता बसा लो |
कुटिलता के संग में जीता,
सरलता से भी दिल लगा लो ||

छल अगर मन में भरा तो,
खुद को तुम निश्छल बना लो |
अज्ञान तुझको जड़ बनाए,
ज्ञान से चेतन बना लो ||

दिल में तेरे भरी है नफरत,
मन को प्रेम की गली में घालो |
मन में नहीं विश्वास प्रभु का,
थोड़ा सा प्रभु नाम गालो ||

वक्र-मन से जटिल जीवन,
सरल तू खुद को बना लो |
मलिनता को छोड़ प्राणी,
मन को तुम निर्मल बना लो ||

क्रोध ज्वार सा मन भरा है,
शांत तुम मन को बना लो |
अगर मन-मद-चूर है तो,
अंत तुम इसका करा लो ||

मन है लोभी-लालची-तुम,
विसर्जन इसका करा लो |
दूजे के धन पर कुदृष्टि,
ग्रहण से खुद को बचा लो ||

है अगर तू आलसी तो,
खुद को तुम कर्मठ बना लो |
कर्म से उत्थान तेरा,
हिमगिरी-सी गुरुता पा लो ||

अगर स्वारथ मन भरा है,
बन हितैषी प्रभु को पा लो |
ऋण को लेकर भव्य मत बन,
पहले तुम ऋण को चूका लो ||

पहली बात का करके खण्डन,
खुद को तुम सज्जन बना लो |
पहली बात को गरल जानो,
दूसरी में सुधा को पा लो ||

पहली बात में मिटती हस्ती,
दूजे में हस्ती बना लो |
पहली बात तो मर्त्य-सम है,
अमरता दूजे में पालो ||

पहली बात में प्रश्न बनता,
दूजे में उत्तर बना लो |
नहीं कहानी बनना तुझको,
खुद को तुम कविता बना लो ||

हर बदी की कर इतिश्री,
अच्छे की शतरंज बिछा लो |
अच्छी बात का श्री गणेश हो,
अब तो तुम हर चाल चालो ||