शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

रावण का सहारा राम

राम नाम लिखकर के जब, बंदरों ने सिला तिराई है।
सुन कर लंकावासी सोचें, ये कैसी चतुराई है?
बात गई रावण के कानों, सुनकर हँसी उड़ाई है।
बड़ी बात क्या है सिला तिराना, इसमें क्या चतुराई है?
क्रोधित हो चुप किया है सबको, अक्कल भांग क्यूँ खाई है?
दुश्मन की क्यूँ करो बड़ाई, क्यों ये महिमा गायी है?
मैं भी सिला तिरा के दिखाऊँ, बात बड़ी नहीं भाई है।
बोल दशानन सोच रहा, नहीं तिरे तो आन बन आई है।।
कैसे सिला तिरे है जल में, ये चिंता मन छाई है।
सारी रात नींद नहीं आई, मंदोदरी अकुलाई है।।
भोर भए रावण ने अपनी, सारी सभा जुड़ाई है।
रावण के संग सारी जनता, सागर तट पर आई है।।
पढ़ के मन्त्र कुछ हाथों से लिखता, पत्थर सिला तिराई है।
देख के जनता ने रावण की, जय-जयकार लगाई है।।
मंदोदरी महलों में पूछे, किस मन्त्र से सिला तिराई है।
सुनकर रावण बोल रहा, मैंने लिखा "राम-रघुराई" है।।