शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

रावण का सहारा राम

राम नाम लिखकर के जब, बंदरों ने सिला तिराई है।
सुन कर लंकावासी सोचें, ये कैसी चतुराई है?
बात गई रावण के कानों, सुनकर हँसी उड़ाई है।
बड़ी बात क्या है सिला तिराना, इसमें क्या चतुराई है?
क्रोधित हो चुप किया है सबको, अक्कल भांग क्यूँ खाई है?
दुश्मन की क्यूँ करो बड़ाई, क्यों ये महिमा गायी है?
मैं भी सिला तिरा के दिखाऊँ, बात बड़ी नहीं भाई है।
बोल दशानन सोच रहा, नहीं तिरे तो आन बन आई है।।
कैसे सिला तिरे है जल में, ये चिंता मन छाई है।
सारी रात नींद नहीं आई, मंदोदरी अकुलाई है।।
भोर भए रावण ने अपनी, सारी सभा जुड़ाई है।
रावण के संग सारी जनता, सागर तट पर आई है।।
पढ़ के मन्त्र कुछ हाथों से लिखता, पत्थर सिला तिराई है।
देख के जनता ने रावण की, जय-जयकार लगाई है।।
मंदोदरी महलों में पूछे, किस मन्त्र से सिला तिराई है।
सुनकर रावण बोल रहा, मैंने लिखा "राम-रघुराई" है।।

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

मुझसे होगी शुरुआत!

यह कविता मेरा माँ ने समाज में फैले भ्रष्टाचार और अनाचार को संबोधित करते हुए लिखा है. यह बताने की कोशिश है कि बदलाव खुद से आ सकती है, मुझसे! इसलिए शुरुआत मुझसे ही करना होगा.

गीत: शोभा सारड़ा
आवाज़: प्रतीक माहेश्वरी
संगीत: प्रतीक माहेश्वरी

विडियो:

बोल:
द्रौपदी की अस्मिता यहाँ हो रही है तार-तार
छलने सीता योगी बन रावण खड़े हैं द्वार द्वार
बनके राम ब्रह्मास्त्र से काटूं रावण का घात
मुझसे होगी शुरुआत!

राजनीति कपट छाया, अनाचार घोर है
कौरवों के, शोषण का, अत्याचार का दौर है
बन कृष्ण अनाचार मिटे हो पांचजन्य का नाद
मुझसे होगी शुरुआत!

महंगाई से जकड़ा मानव भ्रष्टों के सर है ताज
देव संस्कृति लुप्त हुई मंदिर-मस्जिद लगी आग
बन के विवेकानंद करूँगा मैं विवेक की बात
मुझसे होगी शुरुआत!

राजनीति है मूल्यहीन सत्ता संगठ जोड़ है
साम दाम दंड भेद की नीति अवसरवादी होड़ है
खड़ा रहूँगा बन युग प्रहरी करूँ अवसर पर आघात
मुझसे होगी शुरुआत!

राष्ट्र सुरक्षा, जन सेवा संग सच्चे मुद्दे भूल गए
तुच्छ स्वार्थ सिद्धांत रहित सच्ची सुचिता के rule गए
इस धरा पे अमृत लाऊंगा पियूं विष को मैं सुकरात
मुझसे होगी शुरुआत!

सत्ता के इस दांव पेंच में रोटी छिनती गरीब की
झोपडियों में छाये अँधेरा लौ बुझती है दीप की
दीपावली का दीप बनूँगा चाहे अमावस रात
मुझसे होगी शुरुआत!

पतन देश का खूब हुआ झुलसी कश्मीर की वादियाँ
ज़र्रे ज़र्रे में जहर घुला आतंक करे बरबादियाँ
शीश हिमालय ध्वज फहरेगा करूँ तिरंगी बात
मुझसे होगी शुरुआत!